कृषक गान स्वाध्याय | Krushak Gaan Swadhyay | Krushak Gaan Solutions Class 10 Hindi 

Krushak Gaan Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti
Krushak Gaan Class 10 Chapter 11 Solutions
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आज के इस पोस्ट में हम पढ़ेंगे कक्षा 10 वी हिंदी “कृषक गान स्वाध्याय” , इस पाठ का स्वाध्याय हमने बहुत ही आसान भाषा में लिखा है और इसके सभी प्रश्नोत्तर आपकी परीक्षा की तैयारी को आसान बनाने में मदद करेंगे।

तो चलिए शुरू करते है , आज की यह पोस्ट जिसका नाम है – कृषक गान का स्वाध्याय। Krushak Gaan Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti.

कृषक गान स्वाध्याय। Krushak Gaan Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti

1 ] संजाल पूर्ण कीजिए :
Krushak Gaan Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti.

उत्तर :-

Krushak Gaan Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti.

2 ] कृतियाँ पूर्ण कीजिए :

1 )
Krushak Gaan Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti

उत्तर :-

Krushak Gaan Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti

2 )
Krushak Gaan Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti

उत्तर :-

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3 ] वाक्‍य पूर्ण कीजिए :

1. कृषक कमजोर शरीर को ————–
2. कृषक बंजर जमीन को ————–

उत्तर :-

1. कृषक कमजोर शरीर को पत्तियों से पालता है।
2. कृषक बंजर जमीन को अपने खून से सींचकर उर्वरा बना देता है।

4 ] निम्‍नलिखित पपंक्तियों में कवि के मन में कृषक के प्रति जागृत होने वाले भाव लिखिए :
पंक्तिभाव
1. आज उसपर मान कर लूँ
2. आह्वान उसका आज कर लूँ
3. नव सृष्टि का निर्माण कर लूँ
4. आज उसका ध्यान कर लूँ।

उत्तर :-

पंक्तिभाव
1. आज उसपर मान कर लूँअभिमान
2. आह्वान उसका आज कर लूँमानवता
3. नव सृष्टि का निर्माण कर लूँसृजनशीलता
4. आज उसका ध्यान कर लूँ।आदर
5 ] कविता में आए इन शब्‍दों के लिए प्रयुक्‍त शब्‍द हैं :

1. निर्माता —
2. शरीर —
2. राक्षस —
4. मानव —

उत्तर :-

1. निर्माता — सृजक।
2. शरीर — तन।
3. राक्षस — असुर।
4. मानवता — मनुजता।

6 ] कविता की प्रथम चार पंक्‍तियों का भावार्थ लिखिए।  

उत्तर :-

कविता की प्रथम चार पंक्‍तियां

हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है,
जगत में मधुमास, उसपर सदा पतझर रहा है,
दीनता अभिमान जिसका, आज उसपर मान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।

पंक्‍तियों का भावार्थ

कृषक के अभावों की कोई सीमा नहीं है। परंतु वह संतोष रूपी धन के सहारे अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। पूरे संसार में कैसा भी वसंत आए, कृषक के जीवन में सदैव पतझड़ ही बना रहता है। अर्थात ऋतुएँ बदलती हैं, लोगों की परिस्थितियाँ बदलती हैं, परंतु कृषक के भाग्य में अभाव ही अभाव हैं।

ऐसी दयनीय स्थिति के बावजूद उसे किसी से कुछ माँगना अच्छा नहीं लगता। वह हाथ फैलाना नहीं जानता। कृषक को अपनी दीन-हीन दशा पर भी नाज है। मैं ऐसे व्यक्ति पर अभिमान करना चाहता हूँ। कृषक के गीत गाना चाहता हूँ।

7 ] निम्‍न मुद्दों के आधार पर पद्‌य विश्लेषण कीजिए :

1. रचनाकार कवि का नाम :
2. रचना का प्रकार :
3. पसंदीदा पंक्ति :
4. पसंदीदा होने का कारण :
5. रचना से प्राप्त प्रेरणा :

उत्तर :-

1. रचनाकार का नाम : दिनेश भारद्वाज।
2. कविता की विधा : गान।
3. पसंदीदा पंक्ति : हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है।
4. पसंदीदा होने का कारण : अनगिनत अभावों के होते हुए भी कृषक के पास संतोष रूपी धन है।
5. रचना से प्राप्त संदेश/प्रेरणा : कृषक दिन-रात परिश्रम करके संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है। हमें उसके परिश्रम के महत्त्व को समझना चाहिए। उसका सम्मान करना चाहिए।

कृषक गान कविता का सरल अर्थ

1. हाथ में संतोष ………………………… का गान कर लूँ।।

कृषक के अभावों की कोई सीमा नहीं है। परंतु उसके पास संतोष रूपी धन है। वह उसी संतोष के सहारे अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। पूरे संसार में कैसा भी वसंत आए, कृषक के जीवन में सदैव पतझड़ ही रहता है। अर्थात ऋतुएँ बदलती हैं, लोगों की परिस्थितियाँ बदलती हैं, परंतु कृषक के भाग्य में अभाव ही अभाव हैं। ऐसी दयनीय स्थिति के बावजूद उसे किसी से कुछ माँगना अच्छा नहीं लगता। कृषक को अपनी दीन-हीन दशा पर भी नाज है। कवि कहते हैं कि में ऐसे व्यक्ति पर अभिमान करना चाहता हूँ। मैं कृषक के गीत गाना चाहता हूँ।

2. चूसकर श्रम रक्त ………………………… का गान कर लूँ।।

कृषक दिन-रात खेतों में काम करता है। अपने रक्त को पसीने के रूप में बहाता है और संपूर्ण जगत को जीवन-रस प्रदान करता है। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में उसके लिए धूप-छाया दोनों एक-सी हैं। मौसम में कैसा भी बदलाव आए, कृषक की स्थिति नहीं बदलती। मैं मानवता के साथ उसका आह्वान करना चाहता हूँ। मैं कृषक के गीत गाना चाहता हूँ।

3. विश्व का पालक  ………………………… का गान कर लूँ।।

कृषक संपूर्ण संसार का अन्नदाता है। वह अन्न उगाकर पूरे विश्व का पालन करता है। लोगों को जीवन देता है। किंतु अफसोस की बात है कि जिन लोगों को वह पालता है, उन्हीं के द्वारा उसे पददलित

किया जाता है। अपमानित किया जाता है। मैं चाहता हूँ कि मैं कृषक का हाथ पकड़कर एक नवीन सृष्टि का निर्माण करूँ, जहाँ लोग उसके महत्त्व को समझें। उसका सम्मान करें। मैं कृषक के गीत गाना चाहता हूँ।

4. क्षीण निज बलहीन ………………………… का गान कर लूँ।।

कृषक को जीवन में पर्याप्त सुविधाएँ नहीं मिल पाती। उसे अपने दुर्बल, क्षीण शरीर को ढकने के लिए कपड़े तक नहीं प्राप्त होते। वह पत्तों से अपना तन ढकने को मजबूर होता है। कृषक ऊसर धरती में जी-तोड़ मेहनत करके, पसीने के रूप में अपने खून को बहाकर उसे उपजाऊ बनाता है। मेरे लिए वह सभी देवी-देवताओं से ऊपर है। मैं चाहता हूँ कि देव-दानवों के स्थान पर कृषक का ही ध्यान करूं, उसी के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करूं। मैं कृषक के गीत गाना चाहता हूँ।

5. यंत्रवत जीवित बना ………………………… का गान कर लूँ।

कृषक एक जीवित मशीन के समान है। वह बिना अपने अधिकार माँगे मशीन की तरह पूरा जीवन काम करता रहता है। उस अन्नदाता, सृष्टि के पालक की दुर्दशा देखकर आज मानवता रो रही है। मैं कण-कण जोड़कर कृषक के लिए एक ऐसे नीड़ का, ऐसे घर का निर्माण करना चाहता हूँ, जहाँ उसे एक अच्छा जीवन जीने के लिए सभी आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त हों। मैं कृषक के गीत गाना चाहता हूँ।

Class 10th Hindi Lokbharti Textbook Solution