आज के इस पोस्ट में हम कक्षा 10 वी हिंदी की छठी कविता “गिरिधर नागर का स्वाध्याय” देखेंगे। इसमें सभी प्रश्नोत्तर आसान भाषा में दिए गए हैं, जो परीक्षा की तैयारी में मदद करेंगे।
तो चलिए शुरू करते हैं आज का यह नया पोस्ट – गिरिधर नागर स्वाध्याय। Giridhar Nagar Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti
गिरिधर नागर स्वाध्याय | Giridhar Nagar Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti
गिरिधर नागर कविता का स्वाध्याय
✿ सूचनानुसार कृतियाँ कीजिए :-
1 ] संजाल पूर्ण कीजिए :

उत्तर :-

2 ] प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :

उत्तर :-

3 ] इस अर्थ में आए शब्द लिखिए :
अर्थ | शब्द | |
---|---|---|
(1) | दासी | ———————————– |
(2) | साजन | ———————————– |
(3) | बार-बार | ———————————– |
(3) | आकाश | ———————————– |
उत्तर :-
अर्थ | शब्द | |
---|---|---|
(1) | दासी | चेरी |
(2) | साजन | -पति |
(3) | बार-बार | बेर-बेर |
(4) | आकाश | अंबर |
4 ] कन्हैया के नाम

उत्तर :-

5 ] दूसरे पद का सरल अर्थ लिखिए ।
हरि, आपके बिना मेरा कौन है ? अर्थात आपके सिवा मेरा कोई ठिकाना नहीं है। आप ही मेरा पालन करने वाले हैं और मैं आपकी दासी हूँ। मैं रात-दिन, हर समय आपका ही नाम जपती रहती हूँ। मैं बार-बार आपको पुकारती हूँ, क्योंकि मुझे आपके दर्शनों की तीव्र लालसा है। यह संसार विभिन्न प्रकार के दोषों और विकारों से भरा हुआ सागर है, जिसके बीच मै घिर गई हूँ। इस संसार रूपी सागर में मेरी नाव टूट गई है।
हे प्रभु, आप शीघ्र इस नाव का पाल बाँधिए, अन्यथा यह जीवन-नौका इस संसार सागर में डूब जाएगी। हे प्रियतम, आपकी यह विरहिणी निरंतर आपकी बाट जोहती रहती है। आपके आगमन की प्रतीक्षा करती रहती है। आपकी यह दासी मीरा सदा आपके नाम का स्मरण करती रहती है और आपकी शरण में आई है।
उपयोजित लेखन
निम्नलिखित शब्दों के आधार पर कहानी लेखन कीजिए तथा उचित शीर्षक दीजिए :
[ अलमारी, गिलहरी, चावल के पापड़, छोटा बच्चा ]
उत्तर :-
शीर्षक: “अलमारी की रहस्यमयी मेहमान”
एक छोटे से गांव के कोने में, मिट्टी की दीवारों वाला एक प्यारा-सा घर था। उस घर में एक दादी, उनका नटखट पोता सोनू, और एक पुरानी लकड़ी की अलमारी रहती थी। अलमारी बहुत बड़ी थी, और दादी उसमें चावल के पापड़, मसाले और कई पुराने सामान रखती थीं।
गर्मियों की छुट्टियों में सोनू रोज़ दादी के साथ पापड़ सुखाने में मदद करता। उसे पापड़ बहुत पसंद थे, खासकर जब वे कुरकुरे हो जाते। एक दिन जब दादी बाहर सब्जी लेने गईं, सोनू खेलने-खेलने रसोई तक पहुंच गया। उसने देखा कि अलमारी का दरवाज़ा थोड़ा खुला है। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, उसे अंदर से कुछ अजीब सरसराहट की आवाज़ आई।
सोनू डरते-डरते अलमारी के पास गया और धीरे से अंदर झांका। वहां एक छोटी सी गिलहरी बैठी थी! उसके मुंह में चावल का पापड़ था और उसकी आंखों में बिल्कुल वैसी ही शरारत थी जैसी सोनू की होती थी। सोनू मुस्कुराया और चुपचाप उसे देखने लगा।
अगले कुछ दिनों तक गिलहरी रोज़ आती और पापड़ लेकर चली जाती। सोनू ने उसे “चुहली” नाम दे दिया। अब वह रोज़ गिलहरी के लिए एक छोटा सा पापड़ निकालकर अलग रखता और खुद भी पास बैठकर देखता कि चुहली कैसे जल्दी-जल्दी खा जाती है।
एक दिन दादी ने यह सब देख लिया, पहले तो वे थोड़ा नाराज़ हुईं लेकिन फिर मुस्कुरा दीं। उन्होंने कहा, “जो इंसान जानवरों से प्यार करता है, वह दिल से बड़ा होता है।” उस दिन से दादी और सोनू मिलकर चुहली के लिए हर हफ्ते कुछ पापड़ अलग रखने लगे।
सीख : प्रकृति के छोटे जीव भी हमारे प्यार और देखभाल के हकदार होते हैं। अगर हम थोड़ा सा ध्यान दें, तो जीवन की सबसे ज्यादा खुशी हमें वहीं मिल सकती है जहाँ हम सोच भी नहीं सकते।
अपठित पद्यांश
✿ सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :-
(भवानी प्रसाद मिश्र)
(1) उत्तर लिखिए :
1. काम करवाने के लिए उपयुक्त —
2. हर समय अच्छी लगने वाली बात —
3. अच्छा प्रयत्न यही है —
4. यही अधोगति है —
उत्तर :-
1. काम करवाने के लिए उपयुक्त — स्नेह
2. हर समय अच्छी लगने वाली बात — प्यार
3. अच्छा प्रयत्न यही है — गिरे हुए को उठाना
4. यही अधोगति है — गिरे हुए को न उठाना
(2) पद्यांश की तीसरी और चौथी पंक्ति का संदेश लिखिए ।
उत्तर :-
कवि प्रेम का महत्त्व समझाते हुए कहते है कि भले ही कोई हमसे कितना भी सख्त, दूर या नाराज क्यों न हो, किंतु हम अपने अंतर का स्नेह प्रकट करके उन्हें सहानुभूति देकर, उनके भीतर भी प्रेम की भावना निर्मित कर सकते हैं। कवि कहते है कि जमाना चाहे जितना भी भ्रष्ट हो जाए, किंतु निःस्वार्थ, पवित्र व सच्चे प्रेम का अस्तित्व और उसकी लोकप्रियता सदैव बनी रहती है। वह हर समय अच्छा लग सकता है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह संदेश दिया है की सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
भाषा बिंदू
कोष्ठक में दिए गए प्रत्येक/कारक चिह्न से अलग-अलग वाक्य बनाइए और उनके कारक लिखिए :
[ ने, को, से, का, की, के, में, पर, हे, अरे, के लिए ]
उत्तर :-
क्र | वाक्य | कारक |
---|---|---|
(1) ने | मनु ने पढाई की। | कर्ता कारक |
(2) को | किसान ने गाय को खाना खिलाया। | करण कारक |
(3) से | मैंने पूजा से किताबें लीं। | करण कारक |
(4) का | अथर्व अनुष्का का भाई है। | संबंध कारक |
(5) की | अनुष्का, अथर्व की बहन है। | संबंध कारक |
(6) के | सोहम के दो मकान है। | संबंध कारक |
(7) में | सर स्कूल में हैं। | अधिकरण कारक |
(8) पर | काव्या सोफे पर बैठी है। | अधिकरण कारक |
(9) हे | हे राम, कितनी अशांतता है यहाँ! | संबोधन कारक |
(10) अरे | अरे! कृष्णा, तुम किधर हो? | संबोधन कारक |
(11) के लिए | पापा ने अनुष्का के लिए किताबें लाएँ। | संप्रदान कारक |
गिरिधर नागर कविता का भावार्थ
1. मेरे तो गिरधर गोपाल …………………………….. तारो अब मोही।।
गिरि को धारण करने वाले, गायों के पालक कृष्ण के सिवा मेरा और कोई नहीं है। जिनके मस्तक पर मोर का मुकुट शोभित है, वे ही मेरे पति हैं। उनके लिए मैंने कुल की मर्यादा छोड़ दी है। चाहे कोई मुझे कुछ भी कहे। संतों के साथ बैठ-बैठकर मैंने लोकलाज त्याग दी है। मैंने अपने प्रेम रूपी बेल को अपने अश्रु रूपी जल से सींच-सींचकर बड़ा किया है। अब तो यह प्रेम-बेल फैल गई है और इसमें आनंद रूपी फल लगने लगा है। मैंने दूध जमाने के पात्र में जमे दही को मथानी से बड़े प्रेम से बिलोया और उसमें से कृष्ण-प्रेम रूपी मक्खन को निकाल लिया। शेष छाछ रूपी निस्सार जगत को छोड़ दिया। कृष्ण-भक्तों को देखकर मैं प्रसन्न होती हूँ, परंतु संसार का व्यवहार देख मुझे दुख होता है और मैं रो पड़ती हूँ। हे गिरधरलाल, मीरा तो आपकी दासी है, उसे इस संसार रूपी भव-सागर से पार लगाओ।
2. हरि बिन कूण गती मेरी …………………………….. मैं सरण हूँ तेरी।।
हे हरि, आपके बिना मेरा कौन है? अर्थात आपके सिवा मेरा कोई ठिकाना नहीं है। आप ही मेरा पालन करने वाले हैं और मैं आपकी दासी हूँ। मैं रात-दिन, हर समय आपका ही नाम जपती रहती हूँ। मैं बार-बार आपको पुकारती हूँ, क्योंकि मुझे आपके दर्शनों की तीव्र लालसा है। यह संसार विभिन्न प्रकार के दोषों और विकारों से भरा हुआ सागर है, जिसके बीच में घिर गई हैं। इस संसार रूपी सागर में मेरी नाव टूट गई है। हे प्रभु, आप शीघ्र इस नाव का पाल बाँधिए, अन्यथा यह जीवन-नौका इस संसार-सागर में डूब जाएगी। हे प्रियतम, आपकी यह विरहिणी निरंतर आपकी बाट जोहती रहती है। आपके आगमन की प्रतीक्षा करती रहती है। आपकी यह दासी मीरा सदा आपके नाम का स्मरण करती रहती है और आपकी शरण में आई है।
3. फागुन के दिन चार …………………………….. चरण कँवल बलिहार रे।।
हे मेरे मन, फागुन मास में होली खेलने का समय अति अल्प होता है। अतः तू जी भरकर होली खेल। अर्थात मानव जीनव अस्थायी है, : इसलिए भगवान कृष्ण से पूर्ण रूप से प्रेम कर ले। जिस प्रकार होली के : उत्सव में नाच आदि का आयोजन होता है, उसी प्रकार कृष्ण-प्रेम में मुझे ऐसा प्रतीत होता है मानो करताल, पखावज आदि बाजे बज रहे हैं और अनहद नाद का स्वर सुनाई दे रहा है, जिससे मेरा हृदय बिना स्वर और राग के अनेक रागों का आलाप करता रहता है। मेरा रोम-रोम भगवान कृष्ण के प्रेम के रंग में डूबा रहता है। मैंने अपने प्रिय से होली खेलने के लिए शील और संतोष रूपी केसर का रंग घोला है। मेरा प्रिय-प्रेम ही होली खेलने की पिचकारी है। उड़ते हुए गुलाल से सारा आकाश लाल हो गया है। अब मुझे लोक-लज्जा का कोई डर नहीं है, इसलिए मैंने हृदय रूपी घर के दरवाजे खोल दिए हैं। अंत में मीरा कहती हैं कि मेरे स्वामी गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले कृष्ण भगवान हैं। मैंने उनके चरण-कमलों में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया है।
Class 10th Hindi Lokbharti Textbook Solution
- 1 भारत महिमा स्वाध्याय
- 2 लक्ष्मी स्वाध्याय
- 3 वाह रे हमदर्द स्वाध्याय
- 4 मन कविता स्वाध्याय
- 5 गोवा जैसा मैंने देखा स्वाध्याय
- 6 गिरिधर नागर स्वाध्याय (giridhar nagar swadhyay)
- 7 खुला आकाश (पूरक पठन) स्वाध्याय
- 8 गजल कविता स्वाध्याय
- 9 रीढ़ की हड्डी स्वाध्याय
- 10 ठेस (पूरक पठन) स्वाध्याय
- 11 कृषक गान स्वाध्याय