नमस्कार विद्यार्थी मित्रों!
आज की इस पोस्ट में हम पढ़ने वाले हैं कक्षा 10 वी की हिंदी विषय की “गजल कविता का स्वाध्याय”, वो भी बहुत आसान और सरल भाषा में। यहाँ आपको ग़ज़ल कविता के सभी प्रश्न के उत्तर मिलेंगे।
तो चलिए शुरू करते हैं हमारी आज की यह पोस्ट – गजल कविता स्वाध्याय (Gazal Swadhyay)
गजल कविता स्वाध्याय। Gazal Swadhyay Class 10 Hindi Lokbharti
गजल कविता स्वाध्याय
✿ सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए : —
1 ] गजल की पंक्तियों का तात्पर्य :
1. नींव के अंदर दिखाे ————
2. आईना बनकर दिखो ————
उत्तर :-
1. नींव के अंदर दिखाे : हमें प्रशंसा और वाहवाही का लोभ त्यागकर नींव की ईंटों के समान कुछ अच्छा और सुदृढ़ काम करना चाहिए।
2. आईना बनकर दिखो : हमें ऐसी शख्सियत बनना चाहिए कि कैसी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हो, हम विचलित न हों। बिना टूटे, बिना बिखरे हर परिस्थिति का डटकर सामना करें। अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
2 ] कृति पूर्ण कीजिए :

उत्तर :-

3 ] जिनके उत्तर निम्न शब्द हों, ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए :
1. भीड़
2. जुगनू
3. हततली
4. आसमान
उत्तर :-
1. कवि अक्सर किसी शक्ल को कहाँ देखना चाहता है?
2. वक्त की धुंध में साथ रहने को किसने कहा?
3. कवि खिलते फूल के स्थान पर क्या दिखने को कहता है?
4. गर्द बनकर कहाँ लिखना चाहिए?
4 ] निम्नलिखित पंक्तियों से प्राप्त जीवनमूल्य लिखिए :
1. आपको मिसूस ……………………………………….. भीतर देखो।
उत्तर :-
जैसे मोमबत्ती का धागा सदा उसके साथ रहता है। उसके साथ जलता है। उसी प्रकार जब हम दीन-दुखियों की पीड़ा को समझेंगे, तो उसे दूर करने का यथासंभव प्रयास करेंगे। इस प्रकार हम अपना मानव-धर्म निभा पाएँगे।
2. कोई ऐसी शक्ल ……………………………………….. मुझेअक्सर देखो।
उत्तर :-
हे ईश्वर, मैं चाहता हूँ कि मैं जिसे भी देखूँ, मुझे उसी में तुम नजर आओ। अर्थात मानव मात्र ईश्वर का अंश है।
5 ] कृति पूर्ण कीजिए :
गजल में प्रयुक्त प्राकृतिक घटक
उत्तर :-

6 ] कवि के अनुसार ऐसे दिखो :

उत्तर :-

अभिव्यक्ति
प्रस्तुत गजल की अपनी पसंदीदा किन्हीं चार पंक्तियों का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :-
एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ,
वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो ।
एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते,
गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो ।
पंक्तियों का केंद्रीय भाव :-
अंधकार में चमकता हुआ जुगनू आशा रूपी किरण के समान है जो अंधकार में प्रकाश का साम्राज्य फैलाता है। अर्थात हताश और निराश मनुष्यों के लिए सदैव उम्मीद की किरण जगाए रखने का संदेश दिया गया है । आगे कवि माणिक वर्मा कहते हैं कि मनुष्य के लिए कुछ मर्यादाएं हैं कुछ सीमाएं हैं जिन्हें मानकर वह अपने कर्तव्य का पालन करे, क्योंकि इसी के द्वारा वह जन समुदाय या मानव समाज की सेवा भी कर सकता है।
जिस प्रकार एक सीप के अंदर मूल्यवान मोंती छिपा होता है उसी प्रकार हमें भी समाज के कल्याण के लिए मर्यादाओं के भीतर रहकर श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए क्योंकि इसी भावना के द्वारा मनुष्य सम्मानित होता है। कवि के द्वारा दी गई पंक्तियों के भीतर यही केंद्रीय भाव छिपा है।
उपयोजित लेखन
‘यदि मेरा घर अंतरिक्ष में होता,’ विषय पर अस्सी से सौ शब्दों में निबंध लेखन कीजिए ।
उत्तर :-
किसी का सपना होता है कि उसका घर समुद्र के समीप हो ताकि वह अपने छत या खिड़की से समुद्र के सुंदर नजारों का आनंद उठा सके और कई मुख्य लोगों के घर समुद्र के समीप होते भी हैं। कईयों को अपना आशियाना पहाड़ों की ऊँचाइयों में बनाने की इच्छा होती है, जहाँ से वे शीतल हवाओं और मनरम्य पहाड़ी दृश्यों का लाभ उठा सकें। इसी प्रकार मेरी भी इच्छा है, कि मेरा घर अंतरिक्ष में हो। फिर मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में उपस्थित अनगिनत तारों को नजदीक से देख पाऊँगा।
यदि मेरा घर अंतरिक्ष में होता तो मैं प्रतिदिन चाँद और पृथ्वी की सैर करता व देखता कि पूरी पृथ्वी अंतरिक्ष से कितनी सुन्दर और जगमगाती हुई नज़र आती है। अंतरिक्ष में रहने से मैं चाँद का सौंदर्य, कई ग्रहों और उपग्रहों के रोज़ बदलते स्वरुप का निरीक्षण और अध्ययन कर पाता। अंतरिक्ष में लुप्त रहस्यों को उजागर करता, जो हम पृथ्वीवासियों के लिए असाधारण तथा गहन अध्ययन का विषय है। मैं पूर्ण समय तारों और अंतरिक्ष के दृश्यों को ही निहारता रहता।
परंतु, अंतरिक्ष में जल, वायु और उपजाऊ जमीन का अभाव है, जोकि मानव जीवन निर्वाह में सहायक होती हैं। अंतरिक्ष में ऑक्सीजन का भी अभाव होता है, जिससे वहाँ हमें कृत्रिम ढंग से ऑक्सीज़न लेनी पड़ेगी। अंतरिक्ष में ऑक्सीजन टैंक और मास्क के बिना साँस लेना कठिन व असंभव है, और तो और अंतरिक्ष में जल का भी अभाव होता है, जो मानव जीवन का स्त्रोत है। अतः धरती ही हमारे मनुष्य जीवन के लिए सही है, मैं मैं पृथ्वी का निवासी हूँ और मुझे मेरा घर अति प्रिय है।
गजल कविता का सरल अर्थ
1. आपसे किसने ………………………… भीतर देखो।
किसी भी अट्टालिका के चमचमाते शिखरों को सभी देखते हैं। उनकी शान की प्रशंसा भी करते हैं। लोग समाज में इन शिखरों के समान ही सम्मान पाना चाहते हैं। परंतु वास्तव में देखा जाए तो इन शिखरों से अधिक महत्व है उन ईंटों और पत्थरों का, जिनके कारण ये शिखर बन सके। यदि नींव की ईंटों ने गुमनामी के अंधेरे में रहना स्वीकार न किया होता, तो इन शिखरों का अस्तित्व ही न होता। यदि हम समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो हमें प्रशंसा और वाहवाही का लोभ त्यागकर नींव की ईंटों के समान कुछ अच्छा और सुदृढ़ काम करना चाहिए।
यदि आप मंजिल की ओर अग्रसर हैं तो अपने अच्छे कर्मों के कारण उसी प्रकार आसमानों तक छा जाइए, जैसे आँधी आने पर पृथ्वी से आकाश तक धूल-ही-धूल दृष्टिगोचर होती है। अर्थात आपके द्वारा किए गए अच्छे कामों का प्रभाव और चर्चा हर तरफ हो। और यदि आप मंजिल की ओर बढ़ते हुए मार्ग में कहीं बैठ जाते हो तो मील के पत्थर के समान बनो। मील का पत्थर जिस प्रकार एक पथिक को अपनी मंजिल की ओर बढ़ते समय सहायता करता है, उसी प्रकार क्रियाशील न होते हुए भी आप दूसरों की मदद करें।
ईश्वर ने हमें मनुष्य जीवन दिया है। हमारा उद्देश्य केवल सजना, सँवरना और सुंदर दिखना ही नहीं होना चाहिए। हमारे द्वारा किए गए काम सुंदर होने चाहिए। ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस श्रेष्ठ मानव जीवन में हमें मानवीय गुणों को अपनाना चाहिए। हमारा कोई भी काम ऐसा न हो, जो मानवता के दायरे से बाहर हो। समाज में सभी के प्रति हमारा व्यवहार ऐसा हो कि सारा संसार हमें एक अच्छे मनुष्य के रूप में जाने। हमें ऐसी शख्सियत बनना चाहिए कि कैसी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हों, हम विचलित न हों। बिना टूटे, बिना बिखरे हर परिस्थिति का डटकर सामना करें। अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
हमें प्रत्येक मानव से सहानुभूति रखनी चाहिए। यह तभी संभव हो सकेगा, जब हम उनके हर दुख-तकलीफ को समझें। जैसे मोमबत्ती का धागा सदा उसके साथ रहता है। उसके साथ जलता है। उसी प्रकार जब हम दीन-दुखियों की पीड़ा को समझेंगे, तो उसे दूर करने का यथासंभव प्रयास करेंगे। इस प्रकार हम अपना मानव-धर्म निभा पाएँगे।
2. एक जुगनू ………………………… अक्सर देखो।
जब वक्त हमारा साथ न दे रहा हो; हर तरफ असफलताएँ धुंध के समान छाई हों; निराशा रूपी अंधकार का साम्राज्य हो; ऐसे समय में एक छोटी-सी आशा की किरण भी बहुत बड़ा सहारा बन सकती है। ठीक उसी प्रकार, जैसे घने अंधकार में चमकता हुआ जुगनू। तुम्हें भी निराश, हताश लोगों के मन में आशा की किरण जगाना चाहिए।
सभी मनुष्यों के लिए समाज में रहने के लिए कुछ सीमाएँ हैं, जिनका हमें पालन करना होता है। तभी समाज हमें और हमारे व्यवहार को स्वीकार करता है। अगर तुम चाहते हो कि लोगों में तुम्हारी कोई पहचान बने तो जिस प्रकार सीप के अंदर मूल्यवान मोती छिपा होता है, उसी प्रकार तुम्हें समाज के कल्याण के लिए श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। तुम्हारी यह कल्याण-भावना तुम्हें एक पहचान देगी, सम्मान देगी।
यदि कोई कोमल कली फूल बनने से डर रही हो। कली जानती है कि उसके खिलते ही तितली उसका रस चूसने के लिए आएगी और फूल बनी कली को परेशान करेगी। तुम फूल को तितली से बचाने का प्रयास करो। अर्थात उसके डर को दूर करने में उसकी मदद करो।
यह संसार मनुष्यों का एक सागर है। भीड़ में जाने-अनजाने अनगिनत चेहरे हर तरफ दिखाई देते हैं। हे ईश्वर, मैं चाहता हूँ कि मैं जिसे भी देखू, मुझे उसी में तुम नजर आओ। तुम तो सर्वव्यापक हो।